जब पूरा शहर रात के आगोश में
समां जाता है...
तब....
शहर के भीतर बसा दूसरा 'शहर'
जगमगाता है......
लेकिन................
रौशनी में टिमटिमाता ये 'शहर'
सिर्फ दूर से ही
खूबसूरत नजर आता है......
पास जाने पर
दहकता है, अंगार बरसाता है....
गलता हुआ, सड़ता हुआ सा
बिद्बिदाता, सड़ांध फैलाता
जिन्दा लाशों का ये 'शहर'
मीरगंज कहलाता है.............
मीरगंज.....
जिसे कभी मीर साहब ने बसाया था
अल्लाह की इबादत के लिए.........
आज भी...
यहाँ होती है इबादत...
बस....
अल्लाह की जगह
नंगे जिस्मों ने ले ली है............
क्योंकि.
ये वेश्याओं, वेश्यालयों और
दलालों का 'शहर' है...............
समां जाता है...
तब....
शहर के भीतर बसा दूसरा 'शहर'
जगमगाता है......
लेकिन................
रौशनी में टिमटिमाता ये 'शहर'
सिर्फ दूर से ही
खूबसूरत नजर आता है......
पास जाने पर
दहकता है, अंगार बरसाता है....
गलता हुआ, सड़ता हुआ सा
बिद्बिदाता, सड़ांध फैलाता
जिन्दा लाशों का ये 'शहर'
मीरगंज कहलाता है.............
मीरगंज.....
जिसे कभी मीर साहब ने बसाया था
अल्लाह की इबादत के लिए.........
आज भी...
यहाँ होती है इबादत...
बस....
अल्लाह की जगह
नंगे जिस्मों ने ले ली है............
क्योंकि.
ये वेश्याओं, वेश्यालयों और
दलालों का 'शहर' है...............
5 टिप्पणियां:
उन्हें भी तो जीवन जीना है
पर आप वहां क्यों गए
या टैलीपेथी से पूरी
कविता लिख डाली।
इबादत की जगह, विवशता की मारी नग्नता पर वासना का नंग-नाच करने का उत्तरदायी कौन है ?
सच को इस तरह बयां करने की हिम्मत सबमें नहीं होती................. सलाम आपको........
ऐसी कवितायें रोज रोज पढने को नहीं मिलती...इतनी भावपूर्ण कवितायें लिखने के लिए आप को बधाई...शब्द शब्द दिल में उतर गयी.
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