शुक्रवार, 29 फ़रवरी 2008


Lal Batti

सूरज जैसा हमारा, उनका भी
खून लाल हमारा भी, उनका भी
रूप जैसा हमारा, उनका भी
एक पापी पेट हमारा भी, उनका भी
............. फ़िर क्यों हैं वो दरकिनार ?
दिल में सपने जैसे हमारे, उनके भी
रंग फिजाओं में हमारे भी, उनके भी
रिश्ते मिलावती हमारे भी, उनके भी
खुशियाँ दिखावती हमारी भी, उनकी भी
........ फ़िर क्यों हैं वो सरहद के उस पार ?
........ फ़िर क्यों है उन्हें लाल बत्ती जलने का इंतजार ?

शायद उन्हें पैसे का सुरूर है .....
शायद वो मगरूर हैं .....
या फ़िर शायद ......
वो जिस्म बेचने को.............मजबूर हैं