मंगलवार, 4 मार्च 2008

mandi

हर तरफ़ तोल-मोल चल रहा है
बाजार में खड़े हर शख्स मचल रहा है

" नही इत्ते में नही चलेगा ...........
रेट कुछ कम करना पड़ेगा
साब, जैसा माल वैसा रेट है ......
ताजे गोस्त का रेट आज-कल मार्केट में बहुत टेट (टाईट) है
तुम्हारे चक्कर में हो गया मुझे बहुत लेट है .......
माल लेना हो लो वरना.........
मुझसे हो गई बड़ी मिस्टेक है
अच्छा .............इसका क्या रेट है ?
साब, इसके रेट में कुछ रिबेट है
वैसे माल ये भी बहुत टेट है ........
बस दो-चार बार इसका हुआ रेप है "

................ये मंडी है ..................
जिस्म की......जिंदा इंसानी जिस्म की मंडी
यहाँ बिकते हैं जिस्म
ख़रीदे जाते हैं जिस्म
जिस्मों की इस नुमाइश में
हर किसी के लिए है एक जिस्म
भाव चुकाओ और .........
अपने मन का जिस्म ले जाओ
फ़िर इस जिस्म का ............
जितना चाहो उतना लजीज पकवान बनाओ

हे भगवान् ..................................
तूने इंसान ही क्यों बनाया
अपनी सर्वोत्तम कृति को हैवान क्यों बनाया
हैवान इंसान ने ये मंडी बनाई
मंडी में जिंदा जिस्म की बोली लगाई
कितनी माँ-बहनों ने इस मंडी में अपनी इज्जत गंवाई
हे भगवान् तूने ये मंडी क्यों बनाई ............
मंडी में जिंदा इंसानों की बोली क्यों लगवाई?




शुक्रवार, 29 फ़रवरी 2008


Lal Batti

सूरज जैसा हमारा, उनका भी
खून लाल हमारा भी, उनका भी
रूप जैसा हमारा, उनका भी
एक पापी पेट हमारा भी, उनका भी
............. फ़िर क्यों हैं वो दरकिनार ?
दिल में सपने जैसे हमारे, उनके भी
रंग फिजाओं में हमारे भी, उनके भी
रिश्ते मिलावती हमारे भी, उनके भी
खुशियाँ दिखावती हमारी भी, उनकी भी
........ फ़िर क्यों हैं वो सरहद के उस पार ?
........ फ़िर क्यों है उन्हें लाल बत्ती जलने का इंतजार ?

शायद उन्हें पैसे का सुरूर है .....
शायद वो मगरूर हैं .....
या फ़िर शायद ......
वो जिस्म बेचने को.............मजबूर हैं