हर तरफ़ तोल-मोल चल रहा है
बाजार में खड़े हर शख्स मचल रहा है
" नही इत्ते में नही चलेगा ...........
रेट कुछ कम करना पड़ेगा
साब, जैसा माल वैसा रेट है ......
ताजे गोस्त का रेट आज-कल मार्केट में बहुत टेट (टाईट) है
तुम्हारे चक्कर में हो गया मुझे बहुत लेट है .......
माल लेना हो लो वरना.........
मुझसे हो गई बड़ी मिस्टेक है
अच्छा .............इसका क्या रेट है ?
साब, इसके रेट में कुछ रिबेट है
वैसे माल ये भी बहुत टेट है ........
बस दो-चार बार इसका हुआ रेप है "
................ये मंडी है ..................
जिस्म की......जिंदा इंसानी जिस्म की मंडी
यहाँ बिकते हैं जिस्म
ख़रीदे जाते हैं जिस्म
जिस्मों की इस नुमाइश में
हर किसी के लिए है एक जिस्म
भाव चुकाओ और .........
अपने मन का जिस्म ले जाओ
फ़िर इस जिस्म का ............
जितना चाहो उतना लजीज पकवान बनाओ
हे भगवान् ..................................
तूने इंसान ही क्यों बनाया
अपनी सर्वोत्तम कृति को हैवान क्यों बनाया
हैवान इंसान ने ये मंडी बनाई
मंडी में जिंदा जिस्म की बोली लगाई
कितनी माँ-बहनों ने इस मंडी में अपनी इज्जत गंवाई
हे भगवान् तूने ये मंडी क्यों बनाई ............
मंडी में जिंदा इंसानों की बोली क्यों लगवाई?
7 टिप्पणियां:
wah... dada wah lage raho...mandi bhav ham logon tak pahuchate raho...
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति के साथ ही एक सशक्त सन्देश भी है इस रचना में।
शायद हैवान ही इंसानियत को सक्रिय बनाए रखता है.
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dada kya khoob dada. ultimate superve
thanks to vikas, rahul ji & sanjay
sumeet ji aapko badhai ho achhi photograhpy ke liye...i like this blog....
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